नई दिल्ली/बड़वानी, 12 दिसम्बर 2025।
राज्यसभा में राष्ट्रगीत वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर माननीय सांसद डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी ने विशेष चर्चा में भाग लिया। उन्होंने वंदे मातरम् को मात्र एक गीत नहीं, बल्कि राष्ट्र जागरण का दिव्य महामंत्र बताया, जो पिछले डेढ़ सौ वर्षों से देशवासियों के मन में देशभक्ति, स्वाभिमान, त्याग और समर्पण की भावना का निरंतर संचार कर रहा है।
स्वतंत्रता का मूल मंत्र
डॉ. सोलंकी ने सदन में कहा कि वंदे मातरम् स्वतंत्रता का मूल मंत्र होने के साथ ही बलिदान, ऊर्जा, तपस्या और कर्तव्य का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि यह गीत संपूर्ण भारत की सामूहिक चेतना का प्रतिबिंब है, जिसमें हजारों वर्षों की सभ्यता, संस्कृति और अध्यात्म की अनुभूति समाहित है। यह ऐसा मंत्र है जो निराशा के अंधकार में भी आशा की ज्योति प्रज्वलित करता है।
उन्होंने बताया कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने वर्ष 1875 में आनंद मठ में वंदे मातरम् की रचना कर सोई हुई राष्ट्र-आत्मा को जगाने का कार्य किया था। इसी ऐतिहासिक महत्व को स्वीकार करते हुए 24 जनवरी 1950 को भारत की संविधान सभा ने सर्वसम्मति से इसे राष्ट्रगीत का दर्जा प्रदान किया।
आत्मनिर्भरता और विकास में प्रासंगिकता
डॉ. सोलंकी ने कहा कि आज जब भारत आत्मनिर्भरता और विकास की नई यात्रा पर आगे बढ़ रहा है, तब वंदे मातरम् की भावना पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गई है। उन्होंने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के संकल्प को मजबूत करने में वंदे मातरम् की एकता को महत्वपूर्ण बताया।
उन्होंने यह भी कहा कि जब किसान खेत में परिश्रम करता है, सैनिक सीमा पर डटा रहता है, शिक्षक विद्यार्थियों में संस्कार बोता है और युवा नवाचार से देश का नाम रोशन करता है, तभी वंदे मातरम् अपने सजीव और सार्थक रूप में जीवित रहता है।
संसद में सम्मान की मांग
डॉ. सोलंकी ने वंदे मातरम् पर समय-समय पर उठाए जाने वाले अनावश्यक प्रश्नों पर दुःख व्यक्त किया और कहा कि इतिहास साक्षी है कि फांसी के तख्ते पर चढ़ते समय भी क्रांतिकारियों के होठों पर वंदे मातरम् ही होता था। यह गीत हर युग में राष्ट्रभक्ति का सर्वोच्च उद्घोष रहा है।
उन्होंने सदन के माध्यम से यह आग्रह भी किया कि जब संविधान सभा ने वंदे मातरम् को राष्ट्रगीत के रूप में मान्यता दी है, तो संसद के भीतर भी इसे पूरे सम्मान और गौरव के साथ गाया जाना चाहिए। अंत में, उन्होंने कहा कि यह मातृभूमि को प्रणाम भर नहीं है, बल्कि भारत को समृद्ध, सुरक्षित और गौरवशाली बनाने का संकल्प है।



