बड़वानी, 19 दिसम्बर 2025।
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए रोजगार कानून “विकसित भारत जी राम जी कानून” के खिलाफ मजदूरों और आदिवासियों का आक्रोश फूट पड़ा है। जागृत आदिवासी दलित संगठन ने इस विधेयक को मजदूरों के साथ गद्दारी बताते हुए इसकी प्रतियां जलाईं और पुरजोर विरोध दर्ज कराया। संगठन का कहना है कि यह कानून रोजगार की गारंटी देने के बजाय मजदूरों के हक छीनने वाला है।
”काम का हक” खत्म करने का आरोप
संगठन के नेताओं ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से कहा कि 20 साल पहले संघर्ष के बाद मिले ‘रोजगार गारंटी कानून’ (नरेगा) को इस नए कानून ने पूरी तरह खोखला कर दिया है। संगठन का आरोप है कि:
- मांग पर काम का अधिकार खत्म: अब मजदूर अपनी मांग पर काम नहीं मांग पाएंगे, बल्कि सरकारी अधिकारी तय करेंगे कि काम कब और कहाँ खुलेगा।
- मजदूरी दर में भारी कमी: जहाँ वर्तमान महंगाई के हिसाब से मजदूरी 600 रुपये होनी चाहिए, वहीं नया कानून सरकारी न्यूनतम मजदूरी (467 रुपये) से भी कम दर तय कर रहा है।
- भुगतान पर संकट: मजदूरी भुगतान का जिम्मा अब राज्य सरकारों पर भी डाला गया है। संगठन का कहना है कि जो मध्य प्रदेश सरकार कर्ज के कारण अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पा रही, वह मजदूरों को भुगतान कैसे करेगी?
पलायन रोकने के लिए ठोस गारंटी की मांग
आदिवासी संगठन ने चेतावनी दी है कि मोबाइल हाजिरी और आधार आधारित पेमेंट जैसी जटिलताओं को कानूनी आधार देकर मजदूरों को परेशान किया जा रहा है। संगठन ने मांग की है कि:
- साल में कम से कम 240 दिन की कानूनी रोजगार गारंटी दी जाए।
- मजदूरी की दर कम से कम 600 रुपये प्रतिदिन तय की जाए।
- ग्राम सभाओं को योजना बनाने और काम खोलने का वास्तविक अधिकार वापस मिले।
सरकार के खिलाफ गद्दारी का आरोप
संगठन ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान पर निशाना साधते हुए कहा कि लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने के बावजूद उन्होंने प्रदेश के मजदूरों की समस्याओं को नजरअंदाज कर उनके साथ विश्वासघात किया है। संगठन ने स्पष्ट किया है कि जब तक “काम का पूरा दाम और साल भर काम” नहीं मिलता, उनका विरोध जारी रहेगा।






