बड़वानी, 21 दिसम्बर 2025।
दिगंबर जैन मंदिर बड़वानी में विराजित, राष्ट्र संत गणाचार्य विराग सागर जी महाराज के शिष्य उपाध्याय श्री विभंजन सागर जी मुनिराज ने रविवार को धर्म सभा को संबोधित किया। अपने प्रवचन के दौरान मुनि श्री ने श्रावकों को दैनिक दिनचर्या और पूजा पद्धति से जुड़ी उन बारीक गलतियों के बारे में सचेत किया, जिनकी वजह से व्यक्ति को अपनी धार्मिक क्रियाओं का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता।
क्रियाओं में लाएं विनय और आगम सम्मत विधि
मुनि श्री ने धर्म सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि अपनी धार्मिक क्रियाओं में विनय और विशुद्धि लाना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमें केवल परंपराओं या रूढ़िवादिता के आधार पर पूजन नहीं करना चाहिए, बल्कि आगम (शास्त्रों) में वर्णित सही विधि को अपनाना चाहिए। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि कई श्रावक भगवान का अभिषेक करते समय एक हाथ से कलश पकड़ते हैं और दूसरा हाथ कोहनी पर लगाते हैं, जो कि शास्त्र सम्मत नहीं है। अभिषेक हमेशा दोनों हाथों से कलश पकड़कर ही किया जाना चाहिए।
बच्चों में डालें धर्म के संस्कार
संस्कारों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मुनि श्री ने कहा कि बच्चों में बचपन से ही आगम सम्मत संस्कार डालना आवश्यक है। उन्होंने एक रोचक दृष्टांत देते हुए कहा कि जिस तरह कच्चे आम को पकाने पर वह पक जाता है, लेकिन पके हुए आम को और पकाने की कोशिश की जाए तो वह सड़ सकता है, ठीक उसी तरह नई पीढ़ी को सही समय पर धर्म की शिक्षा देना जरूरी है। बुजुर्गों को भी चाहिए कि वे धार्मिक क्रियाओं में कुतर्क करने के बजाय सत्य को स्वीकार करें।
भावों की विशुद्धि से मिलता है पुण्य का फल
मुनि श्री ने पुण्य अर्जन के तीन तरीके— कृत, कारित और अनुमोदना को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि जो स्वयं धार्मिक क्रिया करता है, जो उसमें सहयोग करता है और जो केवल मन से उसकी अनुमोदना करता है, उन सभी को उनके भावों के अनुसार पुण्य प्राप्त होता है। मेंढक के जीव का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि कैसे विशुद्ध भावों और भगवान के दर्शन की तड़प के कारण एक साधारण जीव को स्वर्ग में देव पद प्राप्त हुआ। उन्होंने सीख दी कि हमारे भाव ही हमारे भविष्य और अगले भव का निर्धारण करते हैं।
बावनगजा की ओर हुआ मुनि संघ का मंगल विहार
मनीष जैन द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, रविवार को धर्म सभा से पूर्व श्रावकों ने भगवान का अभिषेक और शांतिधारा संपन्न की। मुनि श्री के प्रवचन के पश्चात मुनि संघ की आहार चर्या हुई। दोपहर में सामयिक के बाद धर्म की विशेष कक्षा का आयोजन किया गया। इसके उपरांत मुनि संघ ने पार्श्वगिरी और सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र बावनगजा जी की ओर मंगल विहार किया।



